Friday, August 27, 2010

मैं कोई दास नहीं हूं

आज दुनिया में इतना भ्रष्टाचार क्यूं है? एक के बाद एक कानून बनते जा रहे हैं, सख्त से सख्त सजाएं दी जा रही हैं फिर भी हर अपराध बढ़ा ही है. कहीं किसी भी अपराध में कमी नहीं आई है. धर्म और संप्रदायों की किताबें मैत्री और प्रेम के संदेशों से भरी पड़ी हैं, इनसे जुड़े गुरुओं और उनके  अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, फिर भी भ्रष्टाचार , लालच स्वार्थ और इसके  परिणामस्वरूप होने वाले अन्य अपराध बड़ ही रहे हैं..... क्यूं.....इसका जवाब दिया है एक छात्रा ने. जिसका मानना है कि दुनिया भर के शिक्षण संस्थान 18 से 20 साल तक अपने हवाले होने वाली पीढ़ी को महज़ बर्बाद कर रहे हैं और इससे बर्बाद पीढ़ी के दम पर एक बेहतर दुनिया की नींव नहीं रखी जा सकती-----------------------------

"आज हमारे स्कूल छात्रों का ब्रेनवाश कर एक ऐसे मजदूर समूह के रूप में तैयार कर रहे हैं ताकि वे बड़े उद्योग घरानों को लाभ कमवाने या राजनीतिक घरानों के राज को दबाए रखने के काम आ सकें......मैं अब कभी अपनी ज़िन्दगी के ये 18 साल वापस नहीं पा सकती. मेरी ज़िन्दगी का यह महत्वपूर्ण भाग अब पूरा हो चुका है...लेकिन मैं चाहूंगी कि आगे कोई बच्चा इस तरह शोषण और नियन्त्रण का शिकार न हो..."

ये शब्द हैं एरिका गोल्डसन के. एरिका गोल्डसन कोई दार्शनिक , शिक्षाविद या चिन्तक नहीं है लेकिन उसने एक ऐसा काम कर दिखाया है जिसने दुनिया भर के शिक्षाविदों और शिक्षण संस्थानों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया है. वह अमेरिका के कोक्साकी-एथेंस स्कूल से स्नातक में टॉप करने वाली एक छात्रा है जिसने कालेज के विदाई भाषण में उस पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया जिसने उसे टॉपर बनाया था. विद्यालय के विदाई और सम्मान समारोह में अपने टॉपर बनने का जश्न मनाने की जगह उसने समारोह में मौजूद पुराने नए छात्रों, अध्यापकों और मैनेजमेंट को खरी खरी सुनाई. आज इंटरनेट पर उसके  भाषण को लेकर ज़बर्दस्त बहस छिड़ी हुई है. दुनिया भर के शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता इस बहस मेंशामिल हो रहे हैं.

एरिका ने अपने विदाई भाषण में सीधे सीधे आरोप लगाया "स्कूल ने कुल मिलाकर मुझे एक बेहतर नौकर बनने के  लिए तैयार किया है. जबकि मैं एक विचारक हूं, चिन्तक हूं, विश्लेषक हूं.... मैं कोई दास नहीं हूं....."
उसने कहा "मेरा टॉप करना इस बात का सबूत है कि मैं सबसे बेहतर दास थी. मैंने वही किया जो मुझे कहा जाता....लेकिन आज जब इस संस्थान में मेरा समय पूरा हो रहा है तो मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अपने जीवन में क्या करना चाहती हूं. मुझे अपनी चाहत पता ही नहीं है क्योंकि मुझे तो हर विषय को एक कार्य की तरह सिखाया गया और मैंने अपना काम सबसे बेहतर तरीके से किया. लेकिन इससे मैं उस विषय से कुछ सीख नहीं सकी. और वास्तव में तो आज मैं बहुत डर गई हूं....."

"मेरा प्रेरक आज पैसा है, मेरा शौक नहीं... जिस समय मेरे साथ के बहुत से बच्चे अपना होमवर्क नहीं करके आते थे क्योंकि वे अपनी पसन्द की कोई किताब पढ रहे थे, गाने लिख रहे थे, संगीत बना रहे थे, मैं अतिरिक्त क्रेडिट बनाने में लगी थी...तब भी जबकि मुझे इसकी ज़रूरत नहीं थी... ठीक है मैं क्रेडिट ले सकी लेकिन आज मेरे पास क्या है.. मैं डरी हुई हूं कि दुनिया में मैं हमेशा सफल हो भी पाऊंगी या नहीं...."

"... ... आज मैं जिस दुनिया में जा रही हूं उसमें डर का राज है...वहां हम सबके अन्दर मौजूद खासियतें कुचल दी जायेंगी..वहां कार्पोरेटाईज़ेशन और सुविधाओं के  लिए तमाम अमानवीय कार्य किए जाते हैं.... हमारे अन्दर ऐसे होने की नींव ही नहीं डाली गई ताकि हम अपने होने के साथ कोई काम कर सकें ... हम अपनी प्रेरणा से काम करें .. लेकिन दुर्भाग्य से जैसे ही हम इस ट्रेनिंग संस्थानों में आते हैं, हमारे अन्दर से यह छीन लिया जाता है..."

करीब 10 मिनट के विदाई भाषण  में ऐरिका गोल्डसन ने कई ऐसे सवाल उठाए जो सिर्फ अमेरिका ही नहीं उसकी नकल कर रही पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है. बुरी बात ये है कि कारपोरेट घरानों को पढ़े लिखे मजदूर सप्लाई करने की फैक्ट्री बने हमारे शिक्षण संस्थान इस दिशा में सोचने की जहमत नहीं उठाने वाले हैं. और अच्छी बात ये है कि यह बात एरिका से आगे बढ़कर अब दुनिया भर के छात्रों के ज़हन में पहुंच रही है. औरशायद उनमें से कोई ऐरिका से आगे का कदम उठाए.

1 comment:

  1. शिक्षा संस्थानों ने जीवन को मृत कर दिया है।

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