Monday, August 30, 2010

.. और हम सब एक 'ए' हैं

ए और बी कही पर मिलते हैं तो एक दूसरे को कैसे पहचानते हैं....
'ए' अपने बारे में                               'ए'  'बी' के बारे में 
  • मैं इंसान हूँ                                        'बी' भी ऐसा ही है
  • मैं गलती करना नहीं चाहता हूँ              'बी' तो हमेशा गलती करता है
  • मुझसे अनजाने में गलती होती है          'बी' तो जानबूझकर ऐसा करता है
                                                          (उसका तो खानदान/नस्ल ही ऐसा है)
  • मुझसे गलती हो तो मुझे समझाया जाए   'बी' समझाने से समझने वाला नहीं है 
  •                                                        (उसे तो सज़ा/सबक मिलना ही चाहिए)
और इस तरह हरेक 'ए' अपने सामने आने वाले 'बी' का आकलन करता ही  है.  वह चाहे घर(माँ, पिता,पति,पत्नी,भाई बहिन, बच्चा...) में हो, दफ्तर(साथी, बॉस, जूनियर, सीनियर, मालिक...  ) में हो, सड़क पर (पैदल, साइकल, स्कूटर वाला, कार वाला, बसवाला, ट्रक वाला... ) हो या कहीं और... और हम सब एक 'ए'  हैं. और इसी के चलते सारी वार्मिंग है... ग्लोबल वार्मिंग से फेमिली वार्मिंग तक...

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